Amavasya and Purnima – (अमावस्या एवं पौर्णमासी)

अमावस्या की आहुतियाँ

यदि अमावस्या को देवयज्ञ (अग्निहोत्र) किया जाये तो अग्निहोत्र की स्विष्टकृत् आहुति से पहले निम्नलिखित आहुतियाँ स्थालीपाक= अर्थात् भात की आहुति प्रदान करें।

ओ३म् अग्नये स्वाहा ।। इदमग्नये-इदं न मम ।।१।।

ओ३म् इन्द्राग्नीभ्यां स्वाहा ।। इदमिन्द्राग्नीभ्याम्-इदं न मम ।।२।।

ओ३म् विष्णवे स्वाहा ।। इदं विष्णवे-इदं न मम ।।३।।

गोभिल गृह्य सूत्र १.८.२१-२३

भावार्थ- अग्नये- ज्ञान स्वरूप ईश्वर के लिए (इन्द्राग्नीभ्याम्) ऐश्वर्य शाली और ज्ञान स्वरूप ईश्वर के लिए (विष्णवे) सर्वव्यापक ईश्वर के लिए (स्वाहा) यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।

निम्नलिखित व्याहृति मन्त्रों से घी की आहुतियाँ प्रदान करें-

ओ३म् भूरग्नये स्वाहा ।। इदम् अग्नये-इदं न मम ।।४।।

ओ३म् भुवर्वायवे स्वाहा ।। इदं वायवे-इदं न मम ।।५।।

ओ३म् स्वरादित्याय स्वाहा ।। इदं आदित्याय-इदं न मम ।।६।।

ओ३म् भूर्भुव: स्वरग्निवाय्वादित्येभ्य: स्वाहा। इदम् अग्नि वाय्वादित्येभ्य-इदं न मम ।।७।।

इसके बाद गायत्री मन्त्र से तीन आहुतियाँ तथा स्विष्टकृत् आहुति देकर अग्निहोत्र की सब विधि पूर्ण करें।

पौर्णमासी की आहुतियाँ

पौर्णमासी को यज्ञ करते समय अग्निहोत्र की स्विष्टकृत् आहुति से पहले निम्नलिखित आहुतिर्याँ स्थालीपाक=भात की आहुति प्रदान करें।

ओ३म् अग्नये स्वाहा ।। इदम् अग्नये-इदं न मम ।।१।।

ओ३म् अग्नीषोमाभ्यां स्वाहा ।। इदम् अग्नीषोमाभ्याम्-इदं न मम ।।२।।

ओ३म् विष्णवे स्वाहा ।। इदं विष्णवे-इदं न मम ।।३।।   गोभिल गृह्य सूत्र १.८.२१-२३

भावार्थ- अग्नये= ज्ञान स्वरूप ईश्वर के लिए अग्नि-सोमाभ्याम्= ज्ञान स्वरूप और आनन्द स्वरूप ईश्वर के लिए विष्णवे= सर्वव्यापक ईश्वर के लिए स्वाहा= यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।

निम्नलिखित व्याहृति मन्त्रों से घी की आहुतियाँ प्रदान करें।

ओ३म् भूरग्नये स्वाहा ।। इदम् अग्नये-इदं न मम ।।४।।

ओ३म् भुवर्वायवे स्वाहा ।। इदं वायवे-इदं न मम ।।५।।

ओ३म् स्वरादित्याय स्वाहा ।। इदम् आदित्याय-इदं न मम ।।६।।

ओ३म् भूर्भुव: स्वरग्निवाय्वादित्येभ्य: स्वाहा ।।

इदम् अग्निवाय्वादित्येभ्य-इदं न मम ।।७।।

इन मन्त्रों का अर्थ पहले दिया जा चुका है।

इसके बाद गायत्री मन्त्र से तीन आहुतियाँ तथा स्विष्टकृत् आहुति देकर अग्निहोत्र की सब विधि पूर्ण करें।