फाल्गुन पूर्णिमा के प्रातः सामान्य पद्धति में प्रदर्शित प्रकारानुसार नव पीताम्बर वा श्वेताम्बर परिधानपूर्वक सामान्य होम करके नवसस्येष्टि के निम्नलिखित मन्त्रों से स्थालीपाक की ३१ विशेष आहुतियां दी जायँ । स्थालीपाक नवागत आषाढ़ी सस्य के गोधूम वा यव (जौ) आटे से बनाया गया मोहनभोग (हलुआ) हो, हवन के अन्य साकल्य में नवागत यव (जौ) विशेषतः मिलाए जांय । यतः देवयज्ञ देवकार्य है और कर्मकाण्ड के सब ग्रन्थों में देवकार्य के पूर्वाह्न में ही करने का विधान है, इसलिए आषाढ़ी नवसस्येष्टि वा होलिकेष्टि भी पूर्वाह्न में करनी चाहिए। पौराणिकों का पूर्णमासी की रात्रि को होली जलाने का कृत्य कर्मकाण्डशास्त्र के विरुद्ध है-
ओ३म् अश्वावती गोमती सूनृतावती बिभर्ति या प्राणभृतामतन्द्रिता। खलमालिनीमुर्वरामस्मिन् कर्मण्युपह्नये ध्रुवागुंग सा में त्वनपायिनी भूयात् स्वाहा।। इदं सीतायै इदन्न मम।
ओ३म् सीतायै स्वाहा।
ओं प्रजायै स्वाहा।
ओं शमायै स्वाहा।
ओं भूत्यै स्वाहा। -पार. कां. २
ओ३म् व्रीहयश्च मे यवाश्च में माषाश्च मे तिलाश्च मे मुद्गाश्च में खल्वाश्च मे प्रियंगवश्च मेऽणवश्च श्यामाकाश्च में नीवाराश्च में गोधूमाश्च में मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् स्वाहा। यजु. १८ । १२ ।
ओ3म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।। (यजु 36/3) इस मन्त्र से तीन बार केवल घृत से आहुतियां दे।
पूर्णाहुति-मन्त्राः
ओं सर्वं वै पूर्ण ँ् स्वाहा। इस मन्त्र से तीन बार केवल घृत से आहुतियां देकर अग्नि होत्र को पूर्ण करें।
पूर्णाहुति के पश्चात् हुतशेष हलुवे को वितरण करके भक्षण किया जाय । अपराह्न में स्व सुभीते के अनुसार आर्यसमाज मन्दिर आदि में सम्मिलित होकर हर्षोत्सव और प्रीतिसम्मेलन किया जाय । उससे पूर्व आर्य पुरुष आर्य बन्धुओं के घरों पर जा कर उनसे प्रेमसंवर्धनार्थं भेंट करें और उनके मध्य में किसी प्रकार का मनोमालिन्य हो तो उसको भी उदारतापूर्वक परस्पर क्षमा-याचना और क्षमाप्रदान द्वारा दूर कर देखें और वहाँ से मिल मिल कर स्वच्छ और प्रेमपूर्ण हृदय से युक्त होकर समाज-मन्दिर के उत्सव में पधारते रहें। इस हर्षोत्सव में सरल प्रीति- भोज, ताम्बूलवितरण, गुलाबजलसिञ्चन वा कुसुमसार ( इत्र) संयोजन का आयोजन होना चाहिए । सुमधुर गीतवाद्य का भी अवश्य प्रबन्ध किया जाथ । उसमें उत्तमोत्तम उपदेशप्रद “होली” आदि सुन्दर पद्य गाए जायें। भारत की संगीत कला की उन्नति एवं समृद्धि उत्सवों द्वारा ही हो सकती है। संगीत से ही उत्सवों की अन्वर्थ उत्सवता स्थिर रह सकती है।