इस अवसर पर, स्विष्टकृत आहुति के पहले अग्निहोत्र करने के बाद, निम्नलिखित अभिषेक दिए जाने चाहिए।
ओ३म् ब्रह्मणे स्वाहा। |
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ओ३म् सावित्र्यै स्वाहा। |
ओ३म् मेधायै स्वाहा। |
ओ३म् धारणायै स्वाहा। |
ओ३म् अनुमतये स्वाहा। |
ओ३म् छन्दोभ्य: स्वाहा। |
ओ३म् श्रद्धायै स्वाहा। |
ओ३म् प्रजायै स्वाहा। |
ओ३म् सदसस्पतये स्वाहा। |
ओ३म् ऋषिभ्य: स्वाहा। |
इसके बाद, गायत्री और स्विष्टकृत मन्त्रों के साथ हवन करना चाहिए।
सब उपस्थित पारिवारिक जन पलाश की तीन-तीन हरी वा शुष्क समिधाओं को घी से भिगोकर सावित्री मन्त्र से आहुति दें। इस प्रकार तीन वार करें। पुनः स्विष्टकृत् आहुति देकर प्रातराश किया जाये।
शन्नो मित्र’ इस मन्त्र को पढ़ कर उस के पश्चात् मुख धोकर, आचमन करके अपने-अपने आसनों पर बैठकर, जलपात्रों में कुशाओं को रखकर, हाथ जोड़कर पुरोहित के साथ तीन-तीन वार ओंकार व्याहृतिपूर्वक सावित्री पढ़ कर वेदों के निम्नलिखित मन्त्र पढ़े।
ऋग्वेद
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्।
होतारं रत्नधातमम्।।
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति।।
यजुर्वेद
ओम् इषे त्वोर्जे त्वा वायव स्थ देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायध्वमध्न्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा अयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघशं सो ध्रुवा अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्नीर्यजमानस्य पशून पाहि ।।
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम् ।। ओं खं ब्रह्म ।।
-यजु. ४० । १७ ।।
सामवेद
अग्न आयाहि वीतये गृणानो हव्यदातये।
नि होता सत्सि बर्हिषि ।।
-साम. पूर्वा. १ । १ ।।
मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः परावत आ जगन्था परस्याः।
सृकं संशाय पविमिन्द्र तिग्म वि शत्रून्ताढि वि मृधो नुदस्व ।।
भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैंगैस्तुष्टुवां सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धाश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्ताक्ष्योअरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
-साम. उ. प्र. ९ । ३ । १-३।
अथर्ववेद
ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभिस्त्रवन्तु नः।।
-अथर्व. १ । ६ । १ ।।
पनाय्यं तदश्विना कृतं वां वृषभो दिवो रजसः पृथिव्याः।
सहस्त्रं शंसा ऊतये गविष्टौ सर्वां इत् ताँ उपयाता पिबध्यै।।
-अथर्व. २० । १४३ । ९ ।।
पश्चात् यह मन्त्र पढ़ें-
सह नोऽवतु सह न इदं वीर्य्यवदस्तु।
ब्रह्मा इन्द्रस्तद्वेद येन यथा न विद्विषामहे।।
इस वेद मन्त्र को पढ़कर सामवेद का वामदेव्यगान करें।