पञ्च महायज्ञों में चौथा स्थान ‘बलिवैश्वदेव यज्ञ’ का है। इसका उद्देश्य नि:सहाय, दीन-दुखियों एवं जीव-जन्तुओं को भोजन देना है। पाकशाला में जो भोजन बने, उसमें से खट्टा नमकीन और क्षार-प्रधान अन्न को छोडक़र शेष अन्न से रसोई की अग्नि में अथवा कुण्ड में निम्नलिखित मन्त्रों से १० आहुतियाँ प्रदान करें। यदि अग्निहोत्र करते समय ही ये आहुतियाँ दी जायें तो स्विष्टकृत् आहुति से पहले प्रदान करें।
ओ३म् अग्नये स्वाहा ।।१।।
ओ३म् सोमाय स्वाहा ।।२।।
ओ३म् अग्नीषोमाभ्यां स्वाहा ।।३।।
ओ३म् विश्वेभ्यो देवेभ्य: स्वाहा ।।४।।
ओ३म् धन्वन्तरये स्वाहा ।।५।।
ओ३म् कुह्वै स्वाहा ।।६।।
ओ३म् अनुमत्यै स्वाहा ।।७।।
ओ३म् प्रजापतये स्वाहा ।।८।।
ओ३म् सहद्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा ।।९।।
ओ३म् स्विष्टकृते स्वाहा ।।१०।।
इसके बाद स्विष्टकृत् आहुति देकर अग्निहोत्र की सब विधि पूर्ण करें। तत्पश्चात् पशु-पक्षी, कीट, पतङ्ग एवं दीन-दुखियों के लिए खाद्य पदार्थों में से कुछ भाग निकालकर उन्हें खिलाना चाहिए। भारत में आज भी भोजन से पहले गौ के लिए रोटी निकाली जाती है। कुत्ते, कौवे आदि को रोटी डालना, चींटियों के बिलों पर आटा डालना आदि कर्म ‘बलिवैश्वदेव यज्ञ’ के ही रूपान्तर है
मन्त्रों के अर्थ
- मैं ज्ञान स्वरूप ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं सुख व शान्ति स्वरूप ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं ज्ञान स्वरूप और सुख शान्ति स्वरूप ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं संसार के प्रकाशक ईश्वर के लिए आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं मुक्ति प्रदाता और रोग हर्त्ता ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं आश्चर्यजनक शक्ति के भण्डार ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं अद्भुत चिति शक्तियुक्त ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं प्रजा के पालक ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं द्युलोक व पृथिवी लोक में व्याप्त ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।
- मैं इष्ट सुख प्रदाता ईश्वर के लिए यह आहुति प्रदान कर रहा हूँ।