॥ अथान्नप्राशनविधि वक्ष्यामः ॥
‘अन्नप्राशन’ संस्कार तभी करे, जब बालक की शक्ति अन्न पचाने योग्य होवे । इस में आश्वलायन गृह्यसूत्र का प्रमाण-
षष्ठे मास्यन्नप्राशनम् ॥१॥
घृतौदनं तेजस्कामः॥२॥
दधिमधुघृतमिश्रितमन्नं प्राशयेत् ॥३॥
इसी प्रकार पारस्करगृह्यसूत्रादि में भी है । छठे महीने बालक को अन्नप्राशन करावे । जिस को तेजस्वी बालक करना हो, वह घृतयुक्त भात अथवा दही सहत और घृत तीनों भात के साथ मिलाके निम्नलिखित विधि से अन्नप्राशन करावे । अर्थात्पू र्वोक्त पृष्ठ ४-२४ में कहे हुए सम्पूर्ण विधि को करके जिस दिन बालक का जन्म हुआ हो, उसी दिन यह संस्कार करे । और निम्न लिखे प्रमाणे भात सिद्ध करे-
ओम् प्राणाय त्वा जुष्टं प्रोक्षामि ॥१॥
ओम् अपानाय त्वा जुष्टं प्रोक्षामि ॥२॥
ओम् चक्षुषे त्वा जुष्टं प्रोक्षामि ॥३॥
ओम् श्रोत्राय त्वा जुष्टं प्रोक्षामि ॥४॥
ओम् अग्नये स्विष्टकृते त्वा जुष्टं प्रोक्षामि ॥५॥
इन पांच मन्त्रों का यही अभिप्राय है कि चावलों को धो शुद्ध करके अच्छे प्रकार बनाना और पकते हुए भात में यथायोग्य घृत भी डाल देना। जब अच्छे प्रकार पक जावें तब उतार थोड़े ठण्डे हुए पश्चात्हो मस्थाली में-
दे॒वीं वाच॑मजनयन्त दे॒वास्ता॑ वि॒श्वरू॑पाः प॒शवो॑ वदन्ति । सा नो॑ म॒न्द्रेष॒मूर्जं॑ दु॒हना धे॒नुर्वाग॒स्मानुप॒ सुष्टुतैतु॒ स्वाहा॑ ॥ इदं वाचे इदन्न मम ॥ १ ॥
वाजो॒ नोऽअ॒द्य प्र सु॑वाति॒ दानं॒ वाजे॑ दे॒वाँऽ ऋ॒तुभि॑ः कल्पयाति । वाजो॒ हि मा॒ सर्व॑वीरं ज॒जान॒ विश्वा॒ऽआशा॒ वाज॑पतिर्जयेय॒ स्वाहा ॥ इदं वाचे वाजाय इदन्न मम ॥२॥
इन दो मन्त्रों से दो आहुति देवें । तत्पश्चात् उसी भात में और घृत डालके-
ओम् प्राणेनान्नमशीय स्वाहा ॥ इदं प्राणाय इदन्न मम ॥ १ ॥
ओमपानेन गन्धानशीय स्वाहा ॥ इदमपानाय इदन्न मम ॥२॥
ओम् चक्षुषा रूपाण्यशीय स्वाहा ॥ इदं चक्षुषे इदन्न मम ॥३॥
ओम् श्रोत्रेण यशोऽशीय स्वाहा ॥ इदं श्रोत्राय इदन्न मम ॥४॥
इन मन्त्रों से ४ चार आहुति देके, (ओं यदस्य कर्मणो० ) पृष्ठ २१ में लिखे प्रमाणे स्विष्टकृत् आहुति एक देवे ।
तत्पश्चात् पृष्ठ २१ में लिखे प्रमाणे व्याहृति आहुति ४ चार, और पृष्ठ २२-२३ में लिखे प्रमाणे (ओं त्वन्नो० ) इत्यादि से ८ आठ आज्याहुति मिलके १२ बारह आहुति देवे। उस के पीछे आहुति से बचे हुए भात में दही मधु और उस में घी यथायोग्य किञ्चित् किञ्चित् मिलाके, और सुगन्धियुक्त और भी चावल बनाये हुए थोड़े से मिलाके बालक के रुचि प्रमाणे-
ओम् अन्न॑य॒तेऽन्न॑स्य नो देह्यनमा॒वस्य॑ शु॒ष्मिणः । प्र॑ दा॒तार॑ तारिषि॒ऽ ऊर्जं नो धेहि द्विपदे॒ चतु॑ष्पदे ॥
इस मन्त्र को पढ़के थोड़ा-थोड़ा पूर्वोक्त भात बालक के मुख में देवे। यथारुचि खिला, बालक का मुख धो और अपने हाथ धोके पृष्ठ २३-२४ में लिखे प्रमाणे महावामदेव्यगान करके, जो बालक के माता-पिता और अन्य वृद्ध स्त्री-पुरुष आये हों, वे परमात्मा की प्रार्थना करके-
“त्वमन्नपतिरन्नादो वर्धमानो भूयाः ॥”
इस वाक्य से बालक को आशीर्वाद देके पश्चात् संस्कार में आये हुए पुरुषों का सत्कार बालक का पिता और स्त्रियों का सत्कार बालक की माता करके सब को प्रसन्नतापूर्वक विदा करें ॥