जन्मदिवस की विधि
परिवार के किसी सदस्य के जन्म दिवस के अवसर पर देवयज्ञ (अग्निहोत्र) करते समय स्विष्टकृत् आहुति से पहले निम्नलिखित मन्त्रों से आहुतियाँ प्रदान करें तथा मन्त्रों के अर्थ का चिन्तन करें।
ओ३म्। इन्द्र जीव सूर्य जीव देवा जीवा जीव्यासम्।
सर्वमायुर्जीव्यासम् ।। स्वाहा ।।
अथर्ववेद १९.७०.१
भावार्थ- हे ऐश्वर्यशाली सर्वव्यापक ईश्वर! मेरा जीवन दीर्घ हो और मैं दिव्य शक्ति से युक्त होकर पूर्ण आयु प्राप्त करूँ।
ओ३म्। तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरद: शतं, जीवेम शरद: शतं, शृणुयाम शरद: शतं, प्रब्रवाम शरद: शतम्, अदीना: स्याम शरद: शतं, भूयश्च शरद: शतात् ।। स्वाहा ।।
यजुर्वेद ३६.२४
भावार्थ- हे ईश्वर! आप सबको देखने वाले तथा सबको मार्ग दिखाने वाले हो। आप ही विद्वानों और उपासकों के हितैषी हो। आप सृष्टि के पूर्व से लेकर सदा विद्यमान रहते हो। आपके शुद्ध स्वरूप को हम सौ वर्षों तक देखते रहें। सौ वर्षों तक आप का ध्यान करते हुए जीवित रहें। सौ वर्षों तक आपके गुण सुनते रहें। सौ वर्षों तक आपके गुणों का प्रवचन करते रहें। सौ वर्षों तक दीनता रहित स्वाधीन होकर जीवित रहें तथा सौ वर्षों के बाद भी हम आपको देखते हुए आपका ध्यान करते हुए, आपके गुणों को सुनते हुए, आपका गुणगान करते हुए, स्वाधीन होकर जीवित रहें।
ओ३म्। सं मा सिञ्चन्तु मरुत: सं पूषा सं बृहस्पति:।
सं मायमग्नि: सिञ्चतु प्रजया च धनेन च दीर्घमायु: कृणोतु मे ।। स्वाहा ।।
अथर्ववेद ७.३३.१
भावार्थ-हे सबके रक्षक परमेश्वर! आपकी कृपा से प्राण देने वाली वायु, भरण-पोषण करने वाली भूमि, प्रकाश देने वाली अग्नि, महान् आकाश और जल ये पाँचों तत्त्व मेरे शरीर को पुष्ट करें। मैं पुत्र-पौत्रों से और धन-ऐश्वर्य से युक्त होकर दीर्घ आयु प्राप्त करूँ।
ओ३म्। सुचक्षा अहम् अक्षीभ्यां भूयासं सुवर्चा मुखेन।
सुश्रुत: कर्णाभ्यां भूयासम् ।। स्वाहा ।।
पारस्करगृह्यसूत्र २.६.१९
भावार्थ-हे परमेश्वर! आपकी कृपा से मैं स्वस्थ सुन्दर और तेजस्वी बना रहूँ। मेरी आँखें स्वस्थ एवं सुन्दर बनी रहें और कान सदा सुन्दर वचन सुनते रहें।
इसके बाद गायत्री मन्त्र से आहुतियाँ तथा स्विष्टकृत् आहुति देकर अग्निहोत्र की सब विधि पूर्ण करें।
आशीर्वाद
जिसका जन्म दिन है वह हाथ जोडक़र प्रभु से दीर्घायु की कामना करे। अन्य सभी उपस्थित महानुभाव हाथ में फूल अथवा चावल लेकर खड़े होकर निम्नलिखित मन्त्र से आशीर्वाद प्रदान करें और यजमान के ऊपर फूलों/चावलों की वर्षा करें।
ओ३म्। त्वं जीव शरद: शतं वर्धमान:।
त्वम् आयुष्मान्, वर्चस्वी, तेजस्वी, श्रीमान् भूया:।
ओ३म् स्वस्ति। ओ३म् स्वस्ति। ओ३म् स्वस्ति ।।
भावार्थ- हे बालक/बालिके! तुम उन्नति प्राप्त करते हुए सौ वर्ष तक जीवित रहो तथा तुम आयुष्मान्/आयुष्मती, तेजस्वी/तेजस्विनी, वर्चस्वी/वर्चस्विनी, यशस्वी/यशस्विनी और धनवान्/धनवती बने रहो। तुम्हारा सदा कल्याण हो।
इसके बाद प्रवचन, भजन तथा आशीर्वाद के गीतों का कार्यक्रम करके शान्तिपाठ करें।