यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र
यदि यजमान के पास यज्ञोपवीत नहीं हो तो निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करके यज्ञोपवीत को शिर की ओर से पहनते हुए बायें कन्धे के ऊपर से तथा दायें हाथ के नीचे से धारण करें।
ओ३म्। यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्र्यं प्रति मुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज: ।।
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।।
पारस्कर गृह्य २.२.११
भावार्थ- यह यज्ञोपवीत अत्यन्त पवित्र व आयु को बढ़ाने वाला है। यह पहले से ही प्रजापति के साथ उत्पन्न हुआ है अर्थात् आदिकाल से ही वैदिक कृत्यों में प्रचलित है। यज्ञ अर्थात् श्रेष्ठ कर्मों के आचरण के निमित्त इस यज्ञोपवीत को मैं धारण कर रहा हूँ। यह मुझे दीर्घायु, उज्ज्वल चरित्र, बल और तेज प्रदान करे।